Sunday, February 7, 2010

अलविदा सर्दियाँ

गर्म रज़ाई और चाय की अद्रकि चुस्कियाँ,
कमरे का मनपसंद कोना और अख़बार की पंक्तिया,
थोड़े से गरम पानी पर होतीं बड़ी सी लड़ाइयाँ;
फिर आलस में सोने का मन्न बनाती मेरी अंगडायाँ
अब जाते हो तो जाओ,
फिर से मेरे घर आना, मेरी सर्दियाँ

खिड़की के शीशे ओस से ढके हैं,
हमारे तुम्हारे गद्दे आग से तपें हैं
दस्ताने और जुराबेन भी सबने कसें हैं
और छोटे से चूल्‍हे पर चड़ी हैं बड़ी बड़ी कढ़ाइयाँ
गरम पकौड़े, सौंठ की चट्नी और जुलाब जामुन की चाशनियाँ
अब जाते हो तो जाओ,
फिर से मेरे घर आना, प्यारी सर्दियाँ

गुनगुनी धूप और बातें बनाती सहेलियाँ,
अमरूद के फाँक, तेल की मालिश और बच्चों की ठिठोलियान,
उँची सी छत से पेचेन लड़ाती लोफेरों की टोलियाँ
और सुर्ख गुलाबों के बीच खिलखिलाती लड़कियाँ
देखूँगा फिर से ये नज़ारा,
जब नये साल आएँगी ये सर्दियाँ

शीत लहरमें बर्फ हो गयी लड़खड़ाती झोपडियान
सर्दी से कपपकपाता बाप, नही है घर में रोटियाँ
आज नौकरी से निकाल दिया मेमसाहब ने,
जो ठिठुरते ठंड मे फिर देर से पहुँची मैं
ना है घर, ना चादर, ना चार पैसे और ना बापू की दवाइयाँ
अबकी बरस आई तो आई,
दुबारा मत आना, मुई सर्दियाँ