Saturday, August 1, 2009

Koshish

When I said to my better half that I can still write songs and poetry, she sensed a chance. She gave me a scene and wanted me to compose something. The scene was that the protagonist is on the beach, mulling whether to say 'yes' to a proposal from his/her love interest. Here is what I came up with. To say the least, I feel good and mushy again...

कोशिश
इक बोझ था सीने पर
समंदर किनारे मैं बिखरा आया
कुद्रत की गुफ़्तगू समझ
जन्मों की हामी भर, मैं निखरा आया

दिल के तारों की उलझती गाँठ
नींदों से परे बेसुकुनी भरी रात
मिलने से पहले की गुदगुदी
मिलने के बाद का इन्तेज़ार
यार संग मुट्ठी भर आसमाँ बटोर आया
बाकी सब समंदर किनारे मैं बिखरा आया

लहरों की कोशिश ज़ारी है
समंदर के पार नये ठिकानों पे पहुँचने की
किरणों की कोशिश ज़ारी है
मधिम्म सूरज से टूट कर, लहरों पे नहाने की
रेत की कोशिश ज़ारी है
सैलानियों की चित्रकारी बचाने की
पवन की कोशिश ज़ारी है
तैरते मचलते बादलों को हराने की
ये कुद्रत की गुफ़्तगू समझ
मैं कोशिशों का दौर बिखरा आया
बाकी सब समंदर किनारे मैं बिखरा आया

मुमकिंन नही लहरों का समंदर से खफा होना
मुमकिंन नही सितारों का आसमाँ से जुदा होना
ना किरणें अलग हो सकती हैं, ना रेत कामयाब
ना वो अलग हो सकती है, ना उसके साथ मेरे ख्वाब
इन्ही चन्द नॅज़ारो में, उनकी यादों में भीग सा आया
बाकी सब समंदर किनारे मैं बिखरा आया

July 28, 2009