दिल न उदास हो के वो पास नहीं
जो हासिल न हुआ तुझे वो खुदा से ख़ास तो नहीं।
गूंजती थी जो शहनाईया सी जो दिल-ऐ-राहों में
क्या हुआ जो अब आती कोई आवाज़ नहीं।
हाल-ऐ-दिल तो यूँ ही बयां किया करते थे हम
ज़िन्दगी में अब थोडी खामोशी ही सही।
गम-ऐ मोहब्बत किसे बतलाएं हम
सुनते तो सब हैं, समझता कोई भी नहीं।
दिल न उदास हो के वो पास नहीं
जो हासिल न हुआ तुझे वो खुदा से ख़ास तो नहीं।
Framed on 10th November 98 in Prof. R.C.Gupta's (Material Science) Period: 9.10am-10.50am
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